वास्तु शास्त्र का आखिर सच क्या है ? प्राचीन वास्तु शास्त्र का शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक आधार कम होते जा रहा है फैशन बन गया है वास्तुशास्त्र और बढ़ता जा रहा है अन्ध विश्वास की ओर. वैदिक काल से ही ज्योतिष शास्त्र अति पुरातन परम्परा मे मानव जीवन के विविध पक्षों पर अति सूक्ष्मता से विचार करता आ रहा है. जिस क्रम से मानव सभ्यता का विकास हुआ उसी क्रम से विविध रूपो मं इस चमत्कारी विद्या का भी विकास हुआ. जीवन मं आने वाली प्राकृतिक - अप्राकृतिक विनाशकारी आपदाओं, घटने वाली घटनाओं और होने वाली बीमारियों को जानने, बाधारहित घर का निर्माण तथा भूमिगत पदार्थो के आधार पर भूमि का शुभ और अशुभ फलों के ज्ञान सहित भूमि का गृहनिर्माण में कितनी उपयोगिता आदि के बारे में ज्योतिष संहिता के भाग में चार पुरुषार्थो के साधन का महत्वपूर्ण अंग है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति का अपना घर होना चाहिये. क्योंकि इसके बिना व्यक्ति के मौत और स्मार्त कर्म पूर्ण फल नही देते. यदि उक्त कर्म किसी दूसरे की भूमि या घर में करते हैं तो उसके पूण्य फल का भागीदार भूमि स्वामी या गृहपति बन जाता है. जैसा कि भविष्यपुराण में उल्लेखित किया गया है। गृहस्थस्य क्रिया: सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं बिना। यतस्तस्माद, गृहारम्भ प्रवेश समयौ ब्रुवे॥ परगेहे कृता: सर्वे श्रौतस्मार्ट क्रिया: शुभा:। न सिद्धयन्ति यतस्मार्त भुमीश: फलमुरश्नुते॥ उपरोक्त पैराणिक कथन से दान में सर्वाधिक महापुण्य कन्यादान होता है. और आज कल के बदलते परिवेश में विवाह करने व कराने का अधिकतम कार्य होटल, रेस्टोरेंट, लॉज, सामुहिक भवन सहित आस पास के मैदान में टेन्ट के छांïव तले ही सम्पन्न होते हैं. इस प्रकार यदि प्रमाणितका के तरफ जाते हैं तो होटल, रेस्टोरेन्ट या सार्वजनिक स्थलों पर केवल रिसेप्शन ही सम्भव है. यहां आपको बताना आवश्यक होगा कि समाजिक विसंगति अथवा बाहरी दिखावा रूपी फैशन इतना हावी हो चुका है कि वास्तु को नियमों व शर्तो को ताक पर रखते हुये इसे अन्ध विश्वास कायम कर अपने आपको एक माडर्न मानव सभ्यता का परिचय देते हैं. परिणाम आप लोगों के सामने है. दिन प्रतिदिन पति-पत्नी में बढ़ती दूरियां पति द्वारा पत्नि को मार देना अथवा पत्नि के अवैध सम्बन्धों के अन्धेरी रात में अपने पति का ही कत्ल करा देना आदि घृणीत कार्यो में पिछले उदशक में भारी वृद्धि हुयी है. वस्तुत: पौराणिक व शास्त्रीय धर्म सूत्र एक दूसरे से आत्म मिलन कराता है. तथा फैशन रूपी माडर्न सभ्यता के फिल्मी स्टाईल सूत्र क्षण मात्र के लिये ऊपरी मन से मिलन होता है. क्योंकि होटलों में विवाह की वेदी पर बैठे वर-वधू छोटी उम्र से ही फिल्मी अंदाज फिल्माया गये करतब देखे हैं. और उसी चित्र पट को माता पिता बखूबी परोसने में वास्तु एवं पुराणों के धर्म सूत्र को नजर अंदाज कर देते हैं. और परिणाम की बिटिया के विवाहोपरान्त चन्द दिनों में अपने माता पिता के शरण में आ जाती है. अथवा सलाखों के पीछे होती है. या तिसरा घृणित कार्य मानी स्वयं प्रभु के प्यारे हो जाती है. खैर बाते बहुत है किन्तु मै आपको सार गर्भित शब्दों में यहाँ ज्योतिष का सूर्य के माध्यम से बताना चाहूँगा कि भारतीय संस्कृति की धुरी शास्त्रीय धर्मसूत्र जीवन को सुधार का बेहतर बनाता है. फैशन पर आधारित सभी कृत्य चाहे वह बनावटी धर्म कृत्य अथवा आधुनिक बनावटी वास्तु शास्त्रीयों के कपोल कल्पित वास्तु के सिद्धान्त यह केवल अन्ध विश्वास के तरफ धकेलने का एक सुनियोजित स्वार्थ पारायणता है जिससे समाज का भला कम लेकिन कपोलकल्पित वास्तु शास्त्रीयों का एक मोटी रकम के रूप में बेहतर भला जरूर होता है. जरूरत है हमें सम्भलने का....
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- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
- ' राष्ट्र देवो भव:' अर्थात् राष्ट्र देव तूल्य पूज्य होता है, और 'राष्ट्रे वयं जागृयाम:' अपने राष्ट्र के आमजनमानस को राष्ट्र के प्रति आस्थावान बनाते हुए राष्ट्र के संस्कृति की रक्षा करने हेतु लोगों में जागृति लाना ही हम सभी भारतीयों का परम कर्तव्य है। क्योंकि ''भारतस्य प्रतिष्ठा द्वे संस्कृति संस्कृतस्तथा'' अर्थात् विश्व के मानचित्र पर भारत को प्रतिष्ठित करने वाली दो वस्तु है पहला यहाँ की संस्कृति और दूसरा संस्कृत भाषा, यही दोनों वस्तुएँ पूरे विश्व को नतमस्तक करने को विवश करता है। संस्कृति का अभिप्राय पारस्परिक भाईचारा जो उपसंस्कृति, लोक-संस्कृति एक दूसरे को जोड़ने का काम करती है, वहीं संस्कृत वह भाषा है, जो विश्व की सभी भाषाओं की जननी है, और भारतीय संस्कृति के सिद्धांत-सूत्र लिपी मानी जाती है। भारतीय ऋषियों द्वारा प्रदत्त षड्वेदांग में ज्योतिष जिसे भारतीय यह 'अपरा' विद्या पूरे विश्व के लिए क्यों है चुनौती आजकल तथाकथित ज्योतिषियों की भरमार है, जो ज्योतिष समाधान के नाम पर अनर्गल भ्रम मात्र फैलाने का कार्य कर रहे हैं, इससे न केवल लोगों का ज्योतिष से आस्था समाप्त हो रही है, बल्कि हमारे देश से 'अपरा' विद्या का क्षरण हो रहा है, जो चिन्ता का विषय है। शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दसामिति । ज्योतिषामयनं चैव षडंगो वेद उच्यते ॥ आईए मिलकर हम सभी संकल्प लें की इस धरोहर की रक्षा करेंगे।