''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका

        

Tuesday, August 29, 2017

बधाई हो मोदी जी ! लेकिन सावधान रहें चीन से यह अविश्वसनीय मित्र है

बधाई हो मोदी जी 'डोकलाम' मुद्दे पर विजयी होने की..

डोकलाम में चीन अब सड़क भले न बनाये पर भारत और चीन मिलकर दुनिया के नक्शे पर जो सड़क बनाने का तानाबाना बुनने की तैयारी में हैं, चार सितंबर को उसकी बुनियाद का नक्शा बन जाने की पूरी संभावना है।
दो महीने तक दो महाबली पंजा मिला कर एक-दूसरे की ताकत और हौसले को आजमाते रहे, उसके बाद दोनों में जो समझदारी बनी है ये समझदारी पूरी दुनिया के शक्ति संतुलन में बहुत बड़ा उलटफेर करने जा रही है।
अपनी दो-गली कूटनीति से अमेरिका कई दशक से लड़ाने और हथियार बेचने का जो धंधा करता आ रहा है, वह नीति शायद अब ज्यादा न चल पाये।
पाकिस्तान को बार बार चेतावनी देने से अब भारत संतुष्ट नही होगा, अमेरिका को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे ।
चीन में चार सितंबर को संभावित भारत -चीन के राष्ट्राध्यक्षों की गुफ्तगू कूटनीति की दुनिया में बहुत बड़े बड़े गुल खिलायेगी।

फिलहाल एक बात तय जान लीजिये कि इन दो महाशक्तियों के निकट भविष्य में टकराव की आशंका खत्म हो चुकी है । अब यही दोनों मिलकर एक नया अध्याय लिखेंगे।
फिर भी चीन की विस्तारवादी निती से सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि पिछली युपीए सरकार की दक्षिण एशिया को लेकर निष्क्रिय नीति के चलते चीन नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका इत्यादि देशो मे जबरदस्त बढत बना लिया है और इन देशो को कर्ज के नाम पर अब ब्लैकमेल भी कर रहा है।
भारत को इसकी भरपाई दक्षिण-पूर्व एशिया के देशो से से बेहतर संबंध और दक्षिण एशिया के इन देशो मे धीरे-धीरे एक बडे भाई की तरह पहुच बनानी होगी।
जो हमारे कूटनितिक महारथी इस निती पर काम  करते दिख भी रहे है?

हालाकि मेरा मानना है कि राजनयिक कूटनीति  में चीन हमारा अविश्वसनीय दुश्मन है।वह हमारे मस्तक पर बैठा हुआ है ,उसने हमारी वेशकीमती हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि अपनी विस्तारवादी नीति के कारण दबाई हुई है।चीन ड्रेगन है उससे हमारी मित्रता घातक होगी। उसकी दखलन्दाजी हमारे सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र को बर्बाद कर देगी।वह हमारा प्रतिद्वंद्वी है।वैसे भी दो महाशक्तियां कूटनीतिक क्षेत्र में एक साथ नहीं होतीं।भारत को नेहरू की नीति पर नहीं चलना चाहिए ।अन्यथा हम फिर धोखा खा जाएंगे। नरेंद्र को 'नेहरू' बनने की कतई जरूरत नही है।

लीक से हटकर आत्महत्या करने की राह पर पाकिस्तान या यूं कहें, उत्तर कोरिया की राह पर बढ़ता पाकिस्तान...

अफगानिस्तान के मसले पर अमेरिका से मिली लताड़ और पाकिस्तान की चीन से बढ़ती नजदीकियों को इलाके के जानकार पाकिस्तान के उत्तर कोरिया बनने की दिशा में बढ़ा कदम मान रहे हैं.

पाकिस्तान और चीन की दोस्ती कोई नयी नहीं है लेकिन हाल के वर्षों में दोनों के बीच आर्थिक साझेदारी के साथ ही सैन्य सहयोग भी काफी बढ़ा है।
इस बीच अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिका की पाकिस्तान को लेकर नाखुशी भी जगजाहिर हो चुकी है।

अफगानिस्तान और दक्षिण एशियाई मामलों के जानकार पाकिस्तान के रुख को उत्तर कोरिया जैसा मान रहे हैं. उनका कहना है कि अगर पाकिस्तान नहीं संभला तो उस पर प्रतिबंध लगने की नौबत भी आ सकती है.
और चीन के लिए ये मौका होगा, बाजार और हथियार का।।
इसलिये चीन पर तो कभी विश्वास करना ही नहीं चाहिये ! क्योंकि चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत 'तिब्बत जैसे देश को लील गया और 'भूटान तथा नेपाल' पर भी रणनीतिक सीमा पर घुसने की कोशीश करते ही रहता है, इसके अलावा पाकिस्तान को निगलने को आतुर है, जिसमे ब्लूचिस्तान पर अपना जाल बिछा ही दिया है ! ऐसे में इस ड्रेगन रुपी हिरण्याकशिपु पर विश्वास करना ही नहीं चाहिये !
- पण्डित विनोद चौबे
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'
9827198828